माँ..ए माँ अभी तैयार ना भइलू ? जल्दी कर गाडी आवहीं वाला बा | समय हो गइल बा देरी कइला पर गाडी छुट नु जाई | ना बाबु ना हम तइयारे बानी तनी मुन्नुवा के आ ओकरा माई के निहारे लगनी हँअ ओही में देर हो गईल ह चल | तनी हमार हथवा पकड़ ल ठीक से ना त हम गिर जायेम | हँ, हँ आव चल…रमेश बाबू अपना माई के हाथ पकड़ के रिक्शा पर बइठवले आ कहले ए रेक्सा वाला जल्दी चल गाडी के टाइम हो चुकल बा | डेरा से निकलहीं में लेट हो गईल ह | इ त सूकर बा कि टीकट पहिलहीं से करा लेले बानी |
रिक्सा वाला ताबड़तोड़ रिक्सा के पावडील मारत कुछ देर में रमेश बाबू आ उनकर 70 बरीस के बूढी माई के टीसनपर ले जाके पंहुचा दिहलस | टीसन पर बड़ी भीड़ रहे रमेश बाबु एक हाथ में अपना बूढी माई के हाथ आ अपना दोसरा हाथ में एगो पुरान झोरा, जेइमे बूढी माई खातिर एगो दुगो कपड़ा आ 2 दिन के रास्ता में खाए खातिर नाश्ता रखले रहलन | लिहले टीसन के भींड से बड़ी मुश्किल से अपना माई के निकालत रेलवे टीसन के पलेटफारम पर पहुचा दिहले | एगो आदमी से पुछले हरिद्वार जाये वाली गाड़िया अभिन गिल नइखे नूं | उ आदमी बड़ी तलीन्नता से कहलस ना.. ना.. देखत नइखी ओही गाडी के नु भीड़ ह | सगरी ओकरे पसिंजर ह लो |
रमेश बाबू एगो लमहर शांस लेहले आ कहले- माई.. भगवान के बड़ी किरिपा बा कि गाडी मिल जाई, छूटल ना | हई एगो कागज दे तानी माई एकरा के सम्भाल के रखिह गाडी के अंतिम टीसन जहाँ आई, माने कि अब गाडी ओकरा आगे ना जाई उहे टीसन हरिद्वार होई | ओहिजा तहरा उतर जायेके बा |
रमेश बाबू के 70 बरीस के बूढी माई कहली हँ, हँ , आ तब ओहिजा से हम का करेब ? रमेश बाबू कहलन ओइजा टीसन पर पहुचला के बाद हम फ़ोन क देम हमरा ऑफिस से एक दु गो आदमी तहरा लगे अईहे सन आ तहरा के हरिद्वार के जेतना तीरथ वाला जगह बाड़ी सन उ देखाई लोग | आ तु हई कागज़ जवन हम देतानी तवन ओह लोग के देखा दिहअ एकरा बाद तहरा कवनो चिंता नइखे करे के |
रमेश बाबू के 70 बरीस के बूढी माँ पाहिले पहिल ओतना भीड़ देखले रहली एह से घबडात रहली | घबडाते-घबडात हामीं भरली आ कहली की तु चलते बाड़अ तअ हमरा कवन चिंता बा | रमेश बाबू कहलन कि हम आफिस के बाकी काम निपटा के बिहने सवेरे वाला गाड़ी से पहुच जायेंम | हमार ओईजा वाला लोग तहरा सेवा में रही खाली तु ई कागजवा वो लोगन के देखा दिहा | बस..! खाली ए कागजवा के सम्हार के राखे के बा | तब तक ले गाडी पलेटफारम पर आ गइल |
बूढी माई के रमेश बाबु जगह देख के बैठा दिहलन आ पानी बेचे वाला से एक बोतल पानी कीन के अपना माई के दे दिहलन आ फेर से कहलन कागजवा के ठीक से धइले बाडू नूं, भुलाये के ना चाहीं | उनकर माई के आँख जवन पहिलहीं से भर गइल रहे अब एक ओर से लोर ढरक हीं गईल | एतने में गाडी सीटी दिहलस आ गाडी पलेटफारम छोड़े लागल | रमेश बाबू पलेटफारम से बाहर अइले एगो राहत के सांस छोडले, आ रिक्सा पकड़ के अपना डेरा पहुँच गईले | बेटा मुनुवा के देखले आ अपना मेहरारू के देखले फेर एगो लमहर साँस छोडले |
गाडी धीरे धीरे आपन रफ्तार पकड लिहले रहे कई गो छोट-बड टीसन पर रुकत आगे बढ़त रहे | नया नया लोग डीबा में आवस आ उतरस | रमेश बाबु के बूढी माई हर दु चार टीसन के बाद डीबा में के बईठल पसिंजर से पुछस- ए बाबु… अब इ गई फेर चली आकि एही टीसन पर रुकल रही | पसिंजर लोग कहे ना माताजी तुरन्ते चली | इ गाडी हरिद्वार जाले अभी 7 टीसन पर रुक्ला के बाद 8वा टीसन हरिद्वार आई, ओइज़ा से इ गाडी आगे ना जाले |
रमेश बाबु के बूढी माई रुके वाला हर टीसन पर गीनस 1, 2, 3 अभी 4 गो टीसन पर रुकी ओकरा बाद हरिद्वार आई | अभी चार टीसन पर रुके बाकी बा | एह लेखान रमेश बाबू के माई गिनती में गबडा जाए के शंका भी मन में लगवली | बाद में एगो भल पसिंजर से कहली ए बाबु हमरा हरिद्वार तीरथ पर जाएके बा | ओइज़ा हमार बाबू के आदमी लोग आई तनी हमरा के हरिद्वार टीसन पर उतर दिह | कुछ देर बाद आखिरकार हरिद्वार टीसन आ गइल |
गाडी रुकल एगो पसिंजर के मदद से रमेश बाबु के माई गाड़ी से उतर के टीसन के बाहर एगो नीमन जगह देख के बइठ गईली | लोग आवत जात रहलन | रमेश बाबु के माई अपरिचित जगह पर केकरा से का कहस मने मन घबरात रहली आ भगवान के याद करत रहली की हम कबले ऐइजा बइठ्ब, कहाँ जाइब, बाबु के आदमी कबले अइहें लोग ऐसन-एसन कई गो प्रश्न उनकर मन में आवत जात रहे |एतने में एक दु आदमी ओ बूढी माई के बहुत देर से बईठल देख के लगे अइलन आ पुछलन ए मातवा अपने के कहवां जाएके बा | रमेश बाबु के माई बड़ा खुश भइली जइसे डूबत आदमी के एगो केहू पकड़ के बाहर निकालत होखे | धधा के कहली आरे हमार बाचवा आ गईल लोग | देखअ ना हेही कागजवा में का लिखल बा | इ कहते हुए कागज़ उनकर ओर बढा दिहली | उ आदमी बूढी माई के हाथ से कागज़ लिहलन आ पढ़ के सोंच में पड गईलन, पता लिखल रहे- “श्री गोपाल वृध्दाश्रम” पी-18, सरदार नगर हरिद्वार |
“माँ-बाप की जगह आपके दिल में होनी चाहिए वृद्ध आश्रम में नहीं”