क्या है असली रक्षा-बंधन…?
हिन्दू धर्म में भाई – बहनों का ये पावन पर्व रक्षा बंधन आदिकाल से हीं मनाया जा रहा है जिसे वैदिक विधि से मनाना श्रेष्ठ माना गया है । इस विधि से मनाने पर भाई का जीवन सुखमय और शुभ फलदायी बनता है । अभी के समय में तो बाज़ार ने हमारे लगभग हर रीति-रिवाज़, तीज-त्यौहार को मनाने के मापदंड बदल कर रख दिये हैं । इस चकाचौंध में इन त्यौहारों के वास्तविक मूल्य भी लगभग विलुप्त से होते जा रहे हैं । रक्षाबंधन से लगभग एक महीने पहले ही बाज़ारों में रौनक शुरु हो जाती है । दुकानें सजाई जाने लगती हैं । रंग-बिरंगी राखियों के स्टॉल भी लगाये जाने लगते हैं । रेशम के धागों से लेकर बनावटी फूलों की राखियां सजी होती हैं । लेकिन क्या आपको पता है कि वैदिक परंपरा के अनुसार जो राखियां आप बाज़ार से खरीदते हैं उनका महत्व केवल प्रतीकात्मक रूप से त्यौहार को मनाने के बराबर ही है । शास्त्र के अनुसार रक्षाबंधन के दिन बहनों को भाई की कलाई पर वैदिक विधि से बनी राखी जिसे वास्तव में रक्षा-सूत्र कहा जाता है बांधी जानी चाहिये । इसे बांधने की विधि भी शास्त्र-सम्मत होनी चाहिये।
रक्षा बंधन के दिन राखी बाँधने के अतिशुभ मुहूर्त तो अपराह्न का समय हीं होता है लेकिन यदि कभी अपराह्न मुहूर्त किन्ही ज्योतिषीय कारणों से उपलब्ध ना हो, तो प्रदोष मुहूर्त भी अनुष्ठान के लिए शुभ माना जाता है । भद्रा समय किसी भी प्रकार के शुभ कार्य के लिए अशुभ माना जाता है इसलिए इस समय ये रक्षा बंधन न करें। कच्चे सूत व हल्दी से बना रक्षासूत्र शुद्ध व शुभ माना जाता है । ऐसी मान्यता है कि सावन के मौसम में यदि रक्षासूत्र को कलाई पर बांधा जाये तो इससे संक्रामक रोगों से लड़ने की हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास होता है । साथ ही यह रक्षासूत्र हमारे अंदर सकारात्मक ऊर्जा का संचरण भी करता है ।
वहीं दुर्वा, अक्षत, केसर, चंदन, सरसों से बना रक्षासूत्र भी शुभ व सौभाग्यशाली माना जाता है । विभिन्न धार्मिक क्रिया-कलापों में इन वस्तुओं का इस्तेमाल होते हुए आपने तो अवश्य देखा होगा । हल्दी, चावल और दूब तो विशेष रूप से लगभग हर पूजा पाठ आदि में प्रयोग की जाती है । दरअसल रक्षासूत्र में इनके इस्तेमाल के पीछे की मान्यता भी यही है कि जिसे भी रक्षासूत्र बांधा जा रहा है उसकी वंश बल दुभ की तरह ही खूब फले-फैले, भगवान श्री गणेश को अति प्रिय होने से इसे विघ्नहर्ता भी माना जाता है । वहीं अक्षत यानि चावल आपसी रिश्तों में एक दूसरे के प्रति श्रद्धा के प्रतीक हैं साथ ही दीर्घायु स्वस्थ जीवन की कामना भी इनमें समाहित मानी जाती है । केसर तेजस्विता के लिये तो चंदन शीतलता यानि संयम के लिये एवं सरसों हमें दुर्गुणों के प्रति तीक्ष्ण बनाये रखे इस कामना के साथ रखी जाती है ।
वैदिक राखी बनाने का सरल उपाय
एक छोटा-सा ऊनी, सूती या रेशमी पीले कपड़े का टुकड़ा लें । उसमें (१) दूर्वा (२) अक्षत (साबूत चावल) (३) केसर या हल्दी (४) शुद्ध चंदन (५) सरसों के साबूत दाने – इन पाँच चीजों को मिलाकर कपड़े में बाँधकर सिलाई कर दें । फिर कलावे से जोड़कर राखी का आकार दें । सामर्थ्य हो तो उपरोक्त पाँच वस्तुओं के साथ स्वर्ण भी डाल सकते हैं । शास्त्र के अनुसार इसके लिए पांच वस्तुओं का विशेष महत्व होता है, जिनसे रक्षासूत्र का निर्माण किया जाता है। इनमें दूर्वा (घास), अक्षत (चावल), केसर, चन्दन और सरसों के दाने शामिल हैं। इन 5 वस्तुओं को रेशम के कपड़े में बांध दें या सिलाई कर दें, फिर उसे कलावे में पिरो दें। इस प्रकार वैदिक राखी तैयार हो जाएगी।
क्या हैं वो पांच वस्तुओं जिनसे आप घर पर का महत्त्व…
दूर्वा (घास) – जैसे दूर्वा का एक अंकुर जमीन में लगाने पर वह हजारों की संख्या में फैल जाती है, वैसे ही ‘हमारे भाई या हितैषी के जीवन में भी सद्गुण फैलते जायें, बढ़ते जायें…’ इस भावना का द्योतक है दूर्वा । उसी प्रकार रक्षा बंधन पर भी कामना की जाती है कि भाई का वंश और उसमें सदगुणों का विकास तेजी से हो। सदाचार, मन की पवित्रता तीव्रता से बढ़ती जाए। दूर्वा विघ्नहर्ता गणेश जी को प्रिय है अर्थात हम जिसे राखी बांध रहे हैं, उनके जीवन में विघ्नों का नाश हो जाए।
अक्षत (चावल) – हमारी परस्पर एक दूजे के प्रति श्रद्धा कभी क्षत-विक्षत ना हो सदा अक्षत रहे ।
केसर – केसर की प्रकृति तेज होती है अर्थात हम जिसे राखी बांध रहे हैं, वह तेजस्वी हो। उनके जीवन में आध्यात्मिकता का तेज, भक्ति का तेज कभी कम ना हो।
चन्दन – चन्दन की प्रकृति शीतल होती है और यह सुगंध देता है। उसी प्रकार उनके जीवन में शीतलता बनी रहे, कभी मानसिक तनाव ना हो। साथ ही उनके जीवन में परोपकार, सदाचार और संयम की सुगंध फैलती रहे।
सरसों के दाने – सरसों की प्रकृति तीक्ष्ण होती है अर्थात इससे यह संकेत मिलता है कि समाज के दुर्गुणों को, कंटकों को समाप्त करने में हम तीक्ष्ण बनें। सरसो के दाने भाई की नजर उतारने और बुरी नजर से भाई को बचाने के लिए भी प्रयोग में लाए जाते हैं।
इस प्रकार इन पांच वस्तुओं से बनी हुई एक राखी को सर्वप्रथम भगवान के चित्र पर अर्पित करें। फिर बहनें अपने भाई को, माता अपने बच्चों को, दादी अपने पोते को शुभ संकल्प करके बांधे। इस प्रकार इन पांच वस्तुओं से बनी हुई वैदिक राखी को शास्त्रोक्त नियमानुसार बांधते हैं, वह पुत्र- पौत्र एवं बंधुजनों सहित वर्षभर सुखी रहते हैं।
राखी बांधते समय बहन यह मंत्र जरुर बोलें शुभ होगा ..
येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबल:। तेन त्वां अभिबद्धनामि रक्षे मा चल मा चल।।
अर्थात :- दानवीर, महाबली राजा बलि जिस (रक्षा सूत्र) से बंध गए थे उसी से मैं तुम्हें भी बाँधता हूँ। फिर रक्षा सूत्र को संबोधित करते हुए- हे रक्षा ! तुम स्थिर रहना, स्थिर रहना। जिस प्रकार भगवान वामन ने राजा बलि को रक्षा सूत्र बांधा था उसी प्रकार मैं तुम्हें भी इस रक्षासूत्र रूपी धर्म-बंधन में बाँधता हूँ। हे रक्षा! तुम स्थिर रहो। इस मंत्र का भाव यही है कि जिस व्यक्ति को रक्षा सूत्र बाँधा जा रहा है वह अपने धर्म में स्थिर रहे और दैवी शक्तियाँ उसकी रक्षा करें। पौराणिक कथाओं में वर्णित महाभारत में यह रक्षा सूत्र माता कुंती ने अपने पोते अभिमन्यु को बाँधी थी । माना जाता है कि जबतक यह धागा अभिमन्यु के हाथ में था तब तक उसकी रक्षा हुई, धागा टूटने पर अभिमन्यु की मृत्यु हुई ।
जो भी बंधुजन रक्षासूत्र बांधते समय मिठाई या गुड़ से मुंह मीठा कराते हुए इस प्रकार इन पांच वस्तुओं से बनी हुई वैदिक राखी को शास्त्रोक्त नियमानुसार बांधते हैं वे सभी जन पुत्र-पौत्र एवं बंधुजनों सहित वर्ष भर सुखी रहते हैं ।