वास्तु दोषों का निवारण करती है गाय
जिस स्थान पर भवन, घर का निर्माण होना हो, यदि वहां पर बछड़े वाली गाय को लाकर बांधा जाय तो वहां सम्भावित वास्तुदोषों का स्वत: निवारण हो जाता है, एवं कार्य निर्विघ्न पूरा हो जाता है इतना हीं नहीं कार्य समापन तक आर्थिक बाधाएं नहीं आती | गाय के प्रति भारतीय आस्था सहजरूप से भारतीय जनमानस में रसी बसी है | गो सेवा को एक कर्तव्य के रूप में माना गया है | गाय सृष्टिमातृका कही गयी है | गाय के रूप में पृथ्वी की करुण पुकार और भगवान विष्णु से आवतार के लिए निवेदन के प्रसंग पुरानों में प्रसिद्ध हैं | ‘समरांगणसूत्रधार’- जैसा प्रसिद्ध बृहद वास्तु ग्रन्थ गो रूप में पृथ्वी-ब्रह्मादि के समागम-संवाद से हीं आरम्भ होता है |
वास्तु ग्रन्थ ‘मयमतम’ में कहा गया है कि भवन निर्माण का शुभारम्भ करने से पूर्व उस भूमि पर ऐसी गाय को लाकर बांधना चाहिये, जो सवत्सा (बछड़े वाली) हो | नवजात बछड़े को जब गाय दुलार कर चाटती है तो उसका फेन भूमि पर गिरकर उसे पवित्र बनाता है और वहां होने वाले समस्त दोषों का निवारण हो जाता है | यही मान्यता अपराजित पृच्छा, वास्तुप्रदीप आदि ग्रंथों में भी है | महाभारत के अनुशासन पर्व में कहा गे अहै कि गाय जहाँ बठकर निर्भयता पुर्वक साँस लेती है तो उस स्थान के सारे पापों को खिंच लेती है |
यह भी कहा गया है कि जिस घर में गाय की सेवा होती है वहां पुत्र-पौत्र, धन, विद्या आदि सुख जो भी चाहिए मिल जाता है | यही मान्यता अत्री संहिता में भी आई है | महर्षि अत्री ने तो यह भी कहा है कि जिस घर में सवत्सा धेनु नहीं हो उसका मंगल-मांगल्य कैसे होगा..?
गाय का घर में पालन करना बहुत लाभकारी है इसमें घरों में सर्व बाधाओं और विघ्नों का निवारण हो जाता है, बच्चो में भय नहीं रहता | विष्णु पुराण में कहा गया है कि जब कृष्ण पूतना के दुग्ध पान से डर गए तो नन्द दम्पत्ति में गाय की पूंछ घुमा कर उनकी नजर उतारी और भय का निवारण किया | बछड़े वाली गाय का शकुन लेकर यात्रा में जाने से कार्य सिद्ध होता है |
पद्म पुराण और कुर्म पुराण में कहा गया है कि कभी गाय को लांघ कर नहीं जाना चाहिए| किसी भी साक्षात्कार उच्च अधिकारी से भेंट आदि के लिए जाते समय गाय के रंभाने की ध्वनि कान में पड़ना शुभ है | संतान लाभ के लिए गाय की सेवा अच्छा उपाय कहा गया है |
गाय के बारे में कुछ विशेष महत्व
- ज्योतिष में गोधुलिका समय विवाह के लिए सर्वोत्तम माना गया है | यदि यात्रा के प्रारम्भ में गाय सामने दिख जाय अथवा अपने बछड़े को दूध पिलाती हुई सामने दिख जाय तो वह यात्रा सफल होती है |
- जिस घर में गाय होती है उस घर का वास्तुदोष स्वत: समाप्त हो जाता है |
- यदि रास्ते में जाते समय गो माता आती हुई दिखाई दें तो उन्हें अपने दाहिने से जाने देना चाहिए यात्रा सफल होती है |
- शास्त्रों में ऐसा भी कहा गया है कि यदि बुरे स्वप्न दिखाई दे तो मनुष्य को गो माता का नाम ले बुरे स्वप्न दिखने बंद हो जायेंगे |
- देशी गाय की पीठ पर जो कुबड़ होता है वह वृहस्पति है | ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक यदि बृहस्पति अपनी नीच राशि मकर में हों या अशुभ स्थिति में हों तो देशी गाय के इस बृहस्पति भाग एवं शिव लिंग रूपी कुबड़ के दर्शन करने चाहिए | गुंड तथा चने की दाल रखकर गाय को रोटी भी दें |
- गो माता के नेत्रों में प्रकाश स्वरूप भगवान सूर्य तथा ज्योत्स्ना के अधिष्ठाता चन्द्रदेव का निवास होता है |
- जन्मपत्री में सूर्य-चन्द्र कमजोर हो तो गो नेत्र का दर्शन करने से दोष का निवारण होता है|
- जन्म पत्री में यदि शुक्र अपनी नीच राशि कन्या पर शुक्र की दशा चल रही हो या शुक्र अशुभ भाव (6,8,12) में स्थित हो तो प्रात: काल के भोजन में से एक रोटी सफ़ेद गाय रंग की गाय को खिलाने से शुक्र का नीचत्व एवं शुक्र संबंधी कुदोष स्वत: हीं समाप्त हो जाता है |
- गाय के घी का एक नाम आयु भी है-“आयुवै घृतम” अत गाय के दूध या घी से व्यक्ति दीर्घायु होता है | हस्तरेखा में यदिआयुरेखा टूटी हुई हो तो गाय का घी काम में लें तथा गाय की पुजा करें सब ठीक हो जायेगा |
शिव पुराण एवं स्कन्द पुराण में कहा गया है कि गो सेवा और गो दान से यम का भय नहीं रहता | गाय के पाँव की धूलि का भी अपना महत्व है | यह पाप विनाशक है, ऐसा मत गरुण पूरण एवं पद्म पूराण का है | ज्योतिष एवं धर्मशास्त्र में बताया गया है कि गोधुली बेला विवाहादि मंगल कार्यों के लिए सर्वोत्तम मुहूर्त है | जब गायें जंगल से चरकर घर वापस आती हैं उस बेला को गोधुलि बेला कहा जाता है | गाय के खुरों से उठने वाली धुल राशि समस्त पाप-तापों को दूर करने वाली है | पंच्गब्य एवं पञ्चामृत की महिमा तो सर्व विदित है | गो दान की महिमा से औं अपरिचित है | ग्रहों के आरिष्ट- निवारण के लिए गो ग्रास देने तथा गौ के दान की विधि ज्योतिष ग्रंथों में विस्तार से मिलती है | इस प्रकार सर्वाधिक कल्याणकारी ‘गाय’ हीं है |