वानर राज सुग्रीव का राज्याभिषेक के बाद सुग्रीव किष्किंधा के राजा हो गए, उस समय अपने भाई लक्ष्मण के साथ श्री राम जी प्रश्रवण गिरी पर चले गए | रघुकुल शिरोमणि निष्पाप श्री रामचंद्र जी वर्षा का अंत होने पर सुग्रीव के साथ रावण पर चढ़ाई करने का निश्चय कर के वहां आए थे | प्रश्रवण पर्वत पर एक बहुत बड़ी और विस्तृत गुफा थी | लक्ष्मण सहित श्री राम ने उसी का अपने रहने का आश्रय लिया | वह पर्वत चीते और मृगों की आवाज से गूंजता रहता | रीछ, वानर, लंगूर, बिलाव आदि जंगली पशु सानंद विहार करते |  नाना प्रकार की झाड़ियां व लताएँ उस पर्वत को अच्छादित किए हुई थी और घने वृक्षों से वह व्याप्त था | नाना प्रकार की धातुओं की खाने हैं निकट में ही नदी बहती है |

गुफा के नजदीक दूसरी ओर त्रिकूट पर्वत के समीप बहने वाली मंदाकिनी के समान तुंगभद्रा नदी बह रही है जिसमें लेश मात्र भी कीचड़ नहीं है | जलबेत,  तिमिद, बकुल, केतक, हिन्ताल, तनिश, नीम, स्थलवेंत, अमलतास आदि भांति-भांति के तटवर्ती वृक्षों से जहां-तहां सुशोभित हुई यह नदी वस्त्र आभूषणों से विभूषित श्रृंगार सज्जित युवती की भांति जान पड़ती है | अत्यंत रमणीय तटों से अलंकृत नाना प्रकार के रत्नों से संपन्न तथा हंस और सारसों से सेवित यह नदी अपनी हास्य इच्छा बिखेरती हुई सी जान पड़ती है | अर्जुन और चंदन वृक्षों की पंक्तियां कितनी सुंदर दिखाई देती हैं | सैकड़ों जल पक्षियों से सेवीत तथा मोर एवं क्रोंच के कलरव से मुखरित हुई यह सौम्य नदी बड़ी रमणीय प्रतीत होती है | यह सारी प्राकृतिक छटाओं को देख प्रभु श्रीराम सुमित्रानंदन से बोले- यह स्थान अदभुत रमणीय एवं मनोहर है |

यहाँ हमलोगों का मन खूब लगेगा अत:  इसी प्रश्रवण गिरी  के इसी गुफा के पास रहना ठीक होगा | हे लक्ष्मण विचित्र काननों से सुशोभित सुग्रीव की रमणीय किष्किंधापूरी भी यहां से करीब ही है, ज्यादा दूर नहीं है क्योंकि इसकी महल से निकलने वाले मृदंग की मधुर थाप की ध्वनि के साथ गरजते हुए बानरों के जीत और गंभीर घोष यहां से स्पष्ट सुनाई देता है | ऐसा विचार कर श्री राम ने भाई लक्ष्मण के साथ कुछ समय काल वही निवास का निश्चय कर रहने लगे |

एक दिन श्री राम के मन में विचार आया कि निश्चय ही कपि श्रेष्ठ श्री सुग्रीव अपनी पत्नी को पाकर राज्य हस्तगत कर और बड़ी भारी लक्ष्मी पर अधिकार प्राप्त कर अपने सुहृदों के साथ आनंदोत्सव मना रहे हैं | यद्यपि उस प्रश्रवण गिरी पर परम सुख प्रदान करने वाले फल-फूल आदि आवश्यक पदार्थ थे तथापि राक्षसों द्वारा हरी गई प्राणों से भी बढ़कर आदरणीय सीता का स्मरण करते हुए भगवान श्रीराम को वहां भी तनिक भी सुख नहीं मिलता, विशेषत: उदयाचल पर उदित हुए चंद्रदेव का दर्शन करके रात में शैय्या पर लेट जाने पर भी उन्हें नींद नहीं आती | सीता के वियोग जनित शोक से आंसू बहाते हुए वे अचेत हो जाते |

श्री राम को निरंतर शोक मग्न रहकर चिंतामग्न देख उनके दु:ख में समान रूप से भाग लेने वाले भाई लक्ष्मण उनसे विनीत हो बोले – “वीर इस प्रकार व्यथीत होने से कोई लाभ नहीं है अतः आपको शोक नहीं करना चाहिए, क्योंकि शोक करने वाले पुरुष के सभी मनोरथ और पुरुषार्थ नष्ट हो जाते हैं जो आपसे छिपा नहीं है ” सुमित्रानंदन लक्ष्मण भैया ने उत्साह वर्धन कराते हुए श्रीराम से कहा-आप जगत् में कर्मठ, वीर तथा देवताओं का आदर करने वाले हैं, आस्तिक, धर्मात्मा, उद्योगी हैं | यदि आप शोकवश उद्योग छोड़ बैठते हैं तो पराक्रम के स्थान स्वरूप समरांगण में कुटीर कर्म करने वाले उस शत्रु का जो विशेषत: राक्षस है वध करने में समर्थ न हो सकेंगे | जैसे राख में छिपी हुई आग को हवन काल में आहूतियों द्वारा प्रज्वलित किया जाता है उसी प्रकार भैया लक्ष्मण ने उत्साहवर्धन करते हुए कहा- आप अपने शौक को जड़ समेत उखाड़ फेंकिये और उद्योग विचार को सुस्थिर कीजिए | तभी आप परिवार समेत उस राक्षस का विनाश करेंगे |

हे वीर-धीर आप तो समुद्र वन और पर्वतों सहित पूरे पृथ्वी को उलाट कर नष्ट भ्रष्ट कर अस्तित्व विहीन कर सकते हैं फिर रावण का वध कर मां सीता को प्राप्त करना आपके लिए कौन सी बड़ी बात है | अब वर्षा काल आ गया है शरद ऋतु की प्रतीक्षा किया जाए और सेना सहित रावण का बध किया जाए | लक्ष्मण के इस शुभ और हितकारी वचनों को सुन श्री रघुनाथ जी ने अपने स्नेही सुमित्रा कुमार से बोले- हे लक्ष्मण अनुरागी, स्नेही, हितैषी और सत्यपराक्रमी वीर को जैसी बात करनी चाहिए वैसे ही तुमने कही है | लो- सब प्रकार के काम बिगाड़ने वाले शोक का मैंने त्याग कर दिया अब मैं पराक्रमी तेज को प्रोत्साहित करके आगे बढ़ता हूं |

तुम्हारी बात मान लेता हूं | सुग्रीव के प्रसन्न होकर सहायता करने और नदियों के जल को स्वच्छ होने की बाट देखता हुआ मैं शरदकाल की प्रतीक्षा करूंगा| अतः पुरुषार्थी को अपने मनोरथ की प्राप्ति हेतु शोक का सर्वथा त्याग हीं परमावश्यक है |

साभार : डॉ० वशिष्ठ तिवारी (आयुर्वेद रत्न), प्रयाग रजि० न०-83443
ऐसे हीं तमाम posts के लिए हमें visit करें..https://gyanmandi.net