आपन भारत भूमि भी महान ह | इहवां एक से बढ़ के एक वीर सपूत के जनम भईल जे अपना कीरती से महान भईल आ पूरा देश में पुजाईल, सम्मानित भईल | आपन देश माटी प्रधान देश ह एसे इहवां सभे आपना माटी से हीं जुडल रहल पसंद करेला | आजो अपना देश में चाहे केहू केतनो तरक्की क लेव केतनो आगे बढ़ि जाव लेकिन उ आपन माटी के ना भुलाला | ना ई माटी ओकरा के भुलाले | आजो चाहे केहू कतहूँ चलि जाव बाकीर जब अपना गावँ लौटेला त गावं के सगरो फसल, गाछ, बिरीछ मन भर अगरा जाले अपना लाल के देख के |

ई आपन माटी भी केतना सुंगंधित बीया कि अपना सुगंध से सगरो देश-विदेश में आपन कोख से पैदा कईल लाल के भेज के ओह जगह के भी सुगंध से गमका देले | आपन माटी के लाल जहाँ-जहाँ भी बाड़ें आपन कबो ना ओराए वाला छाप छोड़ देले बाड़ें | जवना ओरी के बात करीं सब ओरी आपन झंडा लहरवले बाड़ें |

नोकरी के बात करीं चाहे शोध संस्थान के बात करीं, राजनीति के बात करीं चाहे सिनेमा जगत के बात करीं, स्वास्थ्य आ उपचार के बात करीं चाहे शिक्षा रोजगार के बात करीं, पूजा-पाठ के बात करीं चाहे धर्म-अध्यात्म के करीं केतना हम कहीं सभत्तर आपन लोहा मनवा लेले बाड़ें |

एही माटी से पैदा भईल एगो रचनाकार, भोजपुरी भाषा के सेक्शपीयर कहे जाए वाला “भिखारी ठाकुर जी” के रचना “बटोहिया” आज अपने सभन के बीच पोस्ट कर तानी एकरा के जरुर पढ़ीं सभे, बहुते नीमन लागी..

“बटोहिया”

सुन्दर सुभूमि भैया भारत के देसवा से,
मोरे प्रान बसे हिमखोह रे बटोहिया |

एक द्वार घेरे रामा हिम कोतवलवा से,
तीन द्वार सिन्धु घहरावे रे बटोहिया |

जाउ-जाउ भैया रे बटोही हिन्द देखि आउ,
जहँवा कुहुँकि कोयल बोले रे बटोहिया |

पवन सुगंध-गंध अगर गगनवा से,
कामिनी विरह राग गावे रे बटोहिया |

विपिन अगम घन सघन बगन बीच,
चंपक कुसुम रंग देबे रे बटोहिया |

द्रुमवट, पीपल कदम्ब नीम्ब आमवृक्ष,
केतकी गुलाब फूल फूले रे बटोहिया |

तोता-तूती बोले रामा बोले भेंगरजवा से,
पपीहा के पी-पी जिया साले रे बटोहिया |

सुन्दर सुभूमि भैया भारत के देशवा से,
मोरे प्रान बसे गंगा धार रे बटोहिया |

गंगा रे जमुनवा के झगमग पनिया से,
सरजू झमकि लहरावे रे बटोहिया |

ब्रह्मपुत्र-पंचनद घहरत निशिदिन,
सोनभद्र मीठे स्वर गावे रे बटोहिया |

अपर अनेक नदी उमडि घुमडि नाचे,
जुगन के जदुआ चलावे रे बटोहिया |

आगरा प्रयाग काशी दिल्ली कलकतवा से,
मोरे प्रान बसे सरजू तीर रे बटोहिया |

जाउ जाउ भैया रे बटोही हिन्द देखि आउ,
जहाँ ऋषि चारो वेद गावे रे बटोहिया |

सीता के विमल जस राम जस कृष्ण जस,
मोरे बाप दादा के कहानी रे बटोहिया |

व्यास बाल्मीकि ऋषि गौतम कपिलदेव,
सूतल अमर के जगावे रे बटोहिया |

रामानुज रामानन्द न्यारी प्यारी रुपकला,
ब्रह्म सुख बन के भँवर रे बटोहिया |

नानक कबीर गौरशंकर श्रीराम कृष्ण,
अलख के गतिया बतावे रे बटोहिया |

विद्यापति कालीदास सूर जयदेव कवि,
तुलसी के सरल कहानी रे बटोहिया |

जाउ जाउ भैया रे बटोही हिन्द देखि आउ,
जहाँ सुख झुले धान खेत रे बटोहिया |

बुद्धदेव पृथु विक्रमार्जुन शिवाजी के,
फिरि-फिरि हिय सुधि आवे रे बटोहिया |

अपर प्रदेस देस सुभग सुघर वेस,
मोरे हिन्द जग के निचोड रे बटोहिया |

साभार : भोजपुरी के शेक्शपीयर “श्री भिखारी ठाकुर जी”

हम आशा कर तानी अपने सभन के ई पोस्ट पसंद आईल होई, अइसहीं भोजपुरी आ भोजपुरिया माटी से जुडल सभे रचनाकार सभ के कविता, कहानी, बतगुजन, पारम्परिक गीत-संगीत आउर सब प्रकार के रचना हम अपने सभन के बीच में संकलित कईल करेब |

आलोक बच्चन