आज के इस दौर में जब विज्ञान और प्रौद्योगिकी ने हमें अनगिनत सुविधाएँ दी हैं, उसके बाद भी एक सबसे बड़ी विडंबना है कि हमारा खान-पान जो जीवन हमारे का मुख्य आधार है, सबसे अधिक दूषित हो चुका है। कभी जिस अन्न को ‘अन्नपूर्णा’ का वरदान माना जाता था, वह आज ज़हर का रूप ले चुका है। भोजन, जो शरीर और मन को तृप्त करने का साधन होना चाहिए, अब वह बिमारियों का मुख्य कारण बनता जा रहा है। दूध हो, सब्ज़ी हो, फल हो या पैकेज्ड फूड – सब जगह मिलावट और रसायनों का जाल फैला हुआ है। यही कारण है कि आज हर घर में कोई न कोई बीमारी मौजूद है।

अगर हम यह समझने की कोशिस करें कि हमारा खान-पान जो हमारे जीवन का सम्पुर्ण आधार है वो इतना दूषित क्यों है तो इसके पीछे कई कारण मिलते हैं |

  • रासायनिक खेती का प्रभाव :

जिस हरित क्रांति ने भले ही अन्न की पैदावार बढ़ाई, लेकिन उसके साथ रासायनिक खाद और कीटनाशकों ने अन्न को ज़हर से भर दिया। गेहूँ, चावल, दालें, सब्ज़ियाँ और फल—सबमें कीटनाशकों के कुछ ना कुछ अवशेष मौजूद हैं।

  • मुनाफाखोरी की मानसिकता :

आज का किसान, व्यापारी और उद्योगपति अधिकांशतः लाभ को प्राथमिकता देते हैं। शुद्धता, स्वास्थ्य और नैतिकता सबको पीछे छोड़ कमाई की होड़ में सबसे आगे हैं। यही कारण है कि दूध में डिटरजेंट, मिठाई में कृत्रिम रंग, और तेल में मिलावट वाली बात आम हो गई है।

  • बढ़ती जनसंख्या का दबाव :

आज की बढ़ती आबादी की भूख मिटाने के लिए फसलों में जल्दी उत्पादन और अधिक उपज हो उस पर जोर दिया जा रहा है । जिसके चलते खेती के प्राकृतिक तरीकों की उपेक्षा हो रही साथ हीं रासायनिक पदार्थों पर निर्भरता भी बढ़ गई है|

  • प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों का तेजी से बढ़ना :

आज के इस दौर में फास्ट फूड और पैक्ड फूड संस्कृति तेजी से अपना पांव पसार रही है। ये खाद्य पदार्थ स्वादिष्ट भले ही लगते हों, पर पोषणहीन और हानिकारक रसायनों से भरपूर होते हैं।

ये सभी जानते हैं कि भारत कृषि प्रधान देश है। लेकिन यही कृषि आज हमारे लिए सबसे बड़ा खतरा बन गई है। इस बात से सभी अनजान बने हुए हैं |

  • कीटनाशक और रासायनिक खाद: हर साल लाखों टन कीटनाशक छिड़के जाते हैं। आपको क्या लगता है यह केवल कीटों को नहीं मारते, बल्कि हमारी मिट्टी की उर्वरता को भी नष्ट करते हैं।
  • मिट्टी और पानी का प्रदूषण: रसायन जमीन के जल में घुलकर उसे और जहरीला बना रहे हैं। वही पानी जब पीने या सिंचाई में प्रयोग होता है तो उसका विष सीधा हमारे शरीर में पहुँचता है।
  • जैव विविधता का ह्रास: रसायन आधारित खेती करने पर प्राकृतिक कीट नियंत्रण प्रणाली और फसल चक्र बिगड़ एकदम से बिगड़ जाता है।

    3. खाद्य प्रसंस्करण उद्योग का झूठा छलावा

    आज मॉल और सुपरमार्केट की चमक-दमक ने हमारी थाली बदल दी है। पैक्ड फूड जैसे चिप्स, बिस्किट, कोल्ड ड्रिंक, नूडल्स सब ‘आसान भोजन’ के नाम पर धड़ल्ले से बेचे जा रहें हैं, लेकिन इनमें ट्रांस-फैट, सोडियम, कृत्रिम रंग और प्रिज़र्वेटिव की भरमार होती है।
  • ब्रांडिंग का जाल: आजकल कंपनियाँ बड़े-बड़े विज्ञापन दिखाकर यह भ्रम पैदा करती हैं कि उनका प्रोडक्ट पोषक और सुरक्षित है। लेकिन असलियत यह है कि वो उत्पाद हमारे स्वास्थ्य को हीं धीरे-धीरे खा रहा है।

    4. परंपरागत भोजन से दूरी

    प्रिय पाठकों जैसा कि आप सभी जानते हैं भारतीय संस्कृति में भोजन को ‘प्रसाद’ की तरह देखा गया है। दादी-नानी के समय का भोजन सादा, मौसमी और संतुलित होता था। आज वही भोजन ‘आउटडेटेड’ माना जाने लगा है। नतीजा यह हुआ कि बच्चे चिप्स और पिज़्ज़ा को पसंद करने लगे, जबकि दाल-चावल और रोटी-सब्ज़ी पीछे छूट गई।

    5. मिलावटखोरी—सबसे बड़ा अपराध
  • भारत में शायद ही कोई खाद्य पदार्थ ऐसा बचा हो जिसमें मिलावट न होती हो.
  • दूध में यूरिया और डिटरजेंट तक मिलावट की जा रहीं हैं.
  • मिठाई में कपड़े रंगने वाला कृत्रिम रंग मिलाई जा रही हैं.
  • मसालों में ईंट और साबुन का पाउडर मिलाया जा रहा है.
  • तेल में सस्ते घातक रसायन मिलाये जा रहे.
  • सब्जियों में चमक लाने के लिए ऑक्सिटोसिन का इंजेक्शन दिया जा रहा है,



    “यह सब मिल कर हमारी थाली में रोज़ाना ज़हर परोस रहे हैं और हम ये सब जानते हुए भी जहर पान कर रहे हैं और अस्वस्थ हो रहे हैं

    6. खान-पान और बीमारियों का सीधा संबंध

    आपको पता है दूषित खान-पान का असर सीधे हमारे शरीर पर पड़ता है। कीटनाशकों और रसायनों के कारण कैंसर जैसी लाइलाज बीमारियाँ बढ़ रही हैं।
  • मधुमेह और मोटापा : शुगर से भरे पेय और प्रोसेस्ड फूड से यह समस्या आम हो चुकी है।
  • दिल की बीमारियाँ : मिलावटी तेल और ट्रांस-फैट सीधे दिल पर असर डालते हैं।
  • पाचन संबंधी रोग : कृत्रिम रंग और प्रिज़र्वेटिव पेट की बीमारियाँ पैदा करते हैं।

    7. उपभोक्ता की लापरवाही

    हम केवल व्यापारियों को हीं दोष नहीं दे सकते। हम उपभोक्ता भी जिम्मेदार हैं। सस्ता और स्वादिष्ट पाने की लालसा में हम गुणवत्ता को अक्सर नज़र अंदाज कर देते हैं। यही लापरवाही हमें धीरे-धीरे बीमार बना रही है।

    8. समाधान की राह
  • जैविक खेती को बढ़ावा: मेरी राय में रसायन मुक्त खेती ही असली समाधान है।
  • स्थानीय और मौसमी भोजन: हम सभी को पैक्ड फूड छोड़कर अपने गाँव-शहर में उपलब्ध मौसमी फलों और सब्ज़ियों पर लौटना होगा।
  • सरकारी सख्ती: मिलावटखोरी पर कड़ी से कड़ी सजा हो और खाद्य सुरक्षा नियमों का दृढ़ता से पालन हो।
  • जन-जागरूकता: सभी उपभोक्ताओं को जागरूक होना होगा कि क्या खाना है और क्या नहीं।
  • परंपरागत आहार की वापसी: खिचड़ी, दाल, चपाती, छाछ जैसे भोजन ही असल पोषण देते हैं।



    मोटे तौर पर हम यही कहना चाहेंगे कि हमारा खान-पान दूषित होना सिर्फ एक स्वास्थ्य समस्या नहीं है, यह सामाजिक और नैतिक संकट भी है। जिस अन्न को हम देवताओं को अर्पित करते हैं, वही अन्न आज मिलावट और प्रदूषण का शिकार है। हमें यह समझना होगा कि अगर भोजन शुद्ध नहीं रहेगा तो न स्वास्थ्य सुरक्षित रहेगा और न ही समाज की नींव। आज जरूरत है कि हम फिर से अपने भोजन को पवित्र और शुद्ध बनाने का संकल्प लें। हमें मुनाफाखोरी और आधुनिकता के लालच से बाहर निकलकर प्राकृतिक और परंपरागत भोजन की ओर लौटना चाहिए । यही हमारे स्वास्थ्य, समाज और आने वाली पीढ़ियों के लिए वास्तविक वरदान होगा। स्वस्थ्य रहने के लिए भारतीय भोजन जैसे दाल,रोटी,चावल, दही खाए जाएँ आयुर्वेदिक मसालों का उपयोग बढाया जाय |

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