ये माया रूपी संसार “शब्दों” का अनसुलझा तानाबाना है, सकारात्मक रहे तो जीवन सुलझेगा ओर यदि “शब्दों” के अनसुलझे जाल में उलझें तो जीवन भी उलझनों में ही उलझा रहेगा………*
शब्द *रचे* जाते हैं,
शब्द *गढ़े* जाते हैं,
शब्द *मढ़े* जाते हैं,
शब्द *लिखे* जाते हैं,
शब्द *पढ़े* जाते हैं,
शब्द *बोले* जाते हैं,
शब्द *तौले* जाते हैं,
शब्द *टटोले* जाते हैं,
शब्द *खंगाले* जाते हैं,
… इस प्रकार से
शब्द *बनते* हैं,
शब्द *संवरते* हैं,
शब्द *सुधरते* हैं,
शब्द *निखरते* हैं,
शब्द *हंसाते* हैं,
शब्द *मनाते* हैं,
शब्द *रुलाते* हैं,
शब्द *मुस्कुराते* हैं,
शब्द *खिलखिलाते* हैं,
शब्द *गुदगुदाते* हैं,
शब्द *मुखर* हो जाते हैं
शब्द *प्रखर* हो जाते हैं
शब्द *मधुर* हो जाते हैं
इतना होने के बाद भी..
शब्द *चुभते* हैं,
शब्द *बिकते* हैं,
शब्द *रूठते* हैं,
शब्द *घाव देते* हैं,
शब्द *ताव देते* हैं,
शब्द *लड़ते* हैं,
शब्द *झगड़ते* हैं,
शब्द *बिगड़ते* हैं,
शब्द *बिखरते* हैं
शब्द *सिहरते* है
… परन्तु
शब्द कभी *मरते नहीं*
शब्द कभी *थकते नहीं*
शब्द कभी *रुकते नहीं*
शब्द कभी *चुकते नहीं*
… इसीलिए
शब्दों से *खेले नहीं*
*बिन सोचे बोले नहीं*
शब्दों को *मान दें*
शब्दों को *सम्मान दें*
शब्दों पर *ध्यान दें*
शब्दों को *पहचान दें*
ऊंची लंबी *उड़ान दें*
शब्दों को *आत्मसात करें*
उनसे उनकी *बात* करें,
शब्दों का *अविष्कार* करें
गहन सार्थक विचार करें*
… क्योंकि
शब्द *अनमोल* हैं
ज़ुबाँ से निकले *बोल* हैं
शब्दों में *धार* होती है
शब्दों की महिमा *अपार* होती है
शब्दों का *विशाल भंडार* होता है।
और सच तो यह है कि..
*शब्दो का अपना संसार होता है।*
*अतः……*
*शब्दो को सम्मान दें*
*सकारात्मक रहें*