रसोईघर में प्रतिदिन प्रयोग होने वाले मशाले जिन्हें आप सामान्यतया मशाला समझते हैं वो मशाले के साथ साथ अपने आपमें एक औषधियों का समूह है वो आपको स्वस्थ रखने में अहम भूमिका निभाता है..प्रिय पाठकगण आज हम आपको रसोई घर में दैनिक प्रयोग होने वाले कुछ विशेष मशालों के बारे में जानकारी देने वाले हैं जो अपने आप में औषधि हैं उनका प्रयोग आपको निरोगी काया एवं उत्तम आरोग्य प्रदान करता है |
काली मिर्च
काली मिर्च मसालों में से एक महत्वपूर्ण पदार्थ है | इसका विशिष्ट गंध और तीखा स्वाद अनेक पदार्थों की रूचि बढ़ाने का कार्य करता है | जितना काली मिर्च का खाने में महत्वपूर्ण योगदान है उससे भी ज्यादा वह औषधि के तौर पर भी उपयुक्त है | कफ के कारण उत्पन्न विकारों में काली मिर्च उत्तम औषधि है | उष्ण होने से फुफुस में जमे हुए कफ को पतला करने के लिए शहद के साथ काली मिर्च उपयुक्त साबित होता है | यह अत्यधिक तीक्ष्ण और उष्ण होने से अल्प मात्रा में ही सेवन करना जरूरी है | भूख की कमी कमजोर पाचनशक्ति शरीर में अपचित घटकों की निर्मिती में त्रिकटु अर्थात सोंठ, काली मिर्च, पिप्पली इनके एकत्रित चूर्ण को गुनगुने पानी के साथ सेवन करने से लाभ मिलता है काली मिर्च का उपयोग अनेक औषधि में होता है |
जायफल
मशालों के पदार्थों में से एक महत्वपूर्ण घटक है जायफल, पदार्थों को उत्तम गंध प्रदान करने के लिए पर्युक्त होता है | जायफल का वृक्ष बड़ा होता है उसके फल कुछ लम्बे (3 से 8 सेमी०) छोटे अमरुद के समान होते हैं | फल पर त्वचा और मांसल भाग होता है | इस फल पर पीले रंग के विभाजित स्वरुप में फैला हुआ कवच रहता है इसे जायपत्री कहते हैं | फल के अन्दर जो बीज रहता है, उस जायफल के मज्जा का उपयोग औषधि और आहार में होता है | जायपत्री का भी उपयोग होता है |
जायफल का उपयोग अनेक मीठे खाद्य पदार्थ में सुगंध लाने के लिए किया जाता है | जायफल स्तम्भक होने से जुलाब होने पर उसे रोकने के लिए उपयुक्त होता है | पानी में जायफल और सोंठ को घिसकर लगाने से छोटे बच्चो में सर्दी के कारण उत्पन्न सिरदर्द की तकलीफ कम होती है | नींद न आने की शिकायत होने पर जायफल को दूध में घिस कर माथे पर लगाने से फायदा होता है | त्वचा रोगों पर इसका मलहम उपयोगी होता है | मुहासों में जायफल का लेप लगाने से मुहासों के कारण उत्पन्न दाग कम होने में मदद होती है |
दालचीनी
दालचीनी यह उसके वृक्ष की छाल होती है | उसका मशालों में उपयोग किया जाता है | इसका वृक्ष मध्यम आकृति का होता है और छाल धूसर रंग की होती है | इस वृक्ष के पत्र को हीं तमाल पत्र कहते हैं यह रुक्ष और उष्ण गुण कि होने से कफ निष्काशन का कार्य करती है | इसक उपयोग मुख के दुर्गन्ध को नष्ट करने व दांतों को मजबूत करने में सहायक है | दांत में गढ्ढा हो जाने के वजह से दर्द हो रहा हो तो उसमे एक दो बूंद दालचीनी तेल में भिंगोया हुआ रुई का गोला रखने से लाभ मिलता है | कफ के कारण उत्पन्न रोगों का आयुर्वेद की औषधि शितोप्लादी में दालचीनी का उपयोग होता है | दालचीनी के साथ अदरख का रस और खांड मिलाकर बनाया हुआ काढा सर्दी जुकाम में लाभप्रद है | खाली पेट दालचीनी का सेवन कदापि न करें | पित्त बढने से यदि मुह में छाले उत्पन्न होने पर भी दालचीनी नहीं खाना चहिये |
इलाइची
इलाइची का क्षुप छोटा होता है इसके पत्र लम्बे और सुगन्धित होते हैं | फूलों के डंठल लम्बे होते हैं उसमे अनेक फल लगते हैं उन फलों को इलायची कहते हैं | जिसके अन्दर काले रंग के तीक्ष्ण गंध के अनेक दाने रहते हैं | सुगंधी होने से मुख दुर्गन्ध दूर करने हेतु इसका प्रयोग पान के साथ अथवा स्वत: करते हैं | कफ युक्त खाँसी, दम फूलने व फुप्फुस जैसे अनेक विकारों में उपयुक्त होता है | उल्टी होने पर इसका चूर्ण शहद के साथ मिलकर देने से लाभ होता है | इलाइची अन्न में रूचि उत्पन करती है और पाचन शक्ति को बढाती है | यह पाचन में सहायक होने से पचने में भारी पदार्थ जैस खीर, बासुन्दी इत्यादि में इसका प्रयोग होता है | चाय को सुगंधित करने में इलाइची का प्रयोग होता है | इसक प्रयोग गरम मशालों में व मुख रोग दांतों से जुड़े विकार सिर दर्द इत्यादि में होता है |
लौंग
निरोगी मुख के लिए लौंग का प्रयोग करते हैं लौंग का स्वाद तीखा होता है | इससे मुख का चिचिपापन कम होता है मुख के अन्दर की स्लेश्मल कला तथा जिह्वा स्वच्छ होती है | मसुढे और दांतों को यह स्वस्थ करता है इसलिए आयुर्वेदिक दंतमंजनों में लौंग का प्रयोग प्रमुखता से किया जाता है | गर्म मशाले में लौंग का प्रयोग मुख्य रूप से किया जाता है | लौंग का तेल रुई के फाहे में तर करके दांत दर्द वाले जगह पर रखने से दर्द से तत्काल राहत मिलती है | काफ होने पर और कफयुक्त खाँसी होने पर लौंग चूर्ण का प्रयोग मधु के साथ लाभ करता है | भोजन के बाद लौंग खाने का चलन है |
धनिया
सब्जी में जैस आलू का स्थान है वैसे हीं मशालों में धनिया महत्वपूर्ण है | इसका स्वाद कुछ कसैला, कुछ कड़वा और तीखा होता है | यह भूह बढाता है और पाचन क्रिया को सुधारने में मदद करता है | अगर गर्मी के दिनों में पेशाब करते समय जलन हो वेदना हो तो एक चम्मच धनिया और जीरा रात भर पानी में भिगोकर अगले दिन उसे छान कर उस जल को थोडा थोडा पीने से उपरोक्त परशानी का शमन हो जाता है | अगर पेट में जलन हो आंत में जलन हो बुखार लगने में अत्यधिक प्यास लगती हो हाथ पैर में जलन लगती हो तो धनिये का पानी पीने से लाभ मिलता है | शरीर के पित्त दोषों को कम करने के लिए धनिया का प्रयोग उपयुक्त है | धनिया का पत्ता मधुर रस युक्त और पित्त शामक होती है | धनिया के पत्तों का चटनी भोजन को स्वादिष्ट बनाता है | अन्न के प्रति रूचि जगाने में धनिया महत्वपूर्ण है |
जीरा
मशालों में जीरा का अपना महत्व है | जीरा दो प्रकार के होते हैं सफेद जीरा और काला जीरा | काले जीरे को शाह जीरा भी कहते हैं | सफेद जीरा और काले जीरा दोनों का प्रयोग मशालों में होता है | जीरा उष्ण होने से वात और कफ दोनों का शमन करता है | जीरा से भूख बढती है रूचि बढती है | जीरा पाचन क्रिया को सुधारता है और पेट में वायु बनने की क्रिया को कम करता है | पेट दर्द, पेट फूलना, अजीर्ण में जीरे कको भुन कर उसके चूर्ण को गुनगुने पाणी से अथवा मधु के साथ लेने से तत्काल उसके लक्षण कम होते हैं | छाछ में जीरा डाल कर पीने से उत्तम पाचक का कम करता है |
प्रसव के पश्चात प्रसूति के गर्भाशय की शुद्धी होने के साथ-साथ स्तन बढने के लिए जीरा उपयोगी होता है | पेशाब में जलन होना, पथरी जिसे विकारों में धनिया के साथ जीरा पानी में भिंगोकर लेने से लक्षण कम होते हैं |
हल्दी
भारत के प्राय: हर घर में हल्दी का महत्वपूर्ण स्थान है | रोज रसोई घर में भोजन में हल्दी का उपयोग किया जाता है | आयुर्वेद का एंटीबायोटिक कहे जाने वाला हल्दी गरम दूध में उबाल कर सेवन करने से खाँसी कफ के विकार में आराम मिलता है | हल्दी और थोडा सा नमक पानी में डाल कर कुल्ला करने से गले के दर्द, गले का बैठना आदि विकारों के लक्षण कम होते हैं | यही हल्दी घाव पर लगाने से खून रोकने में मदद करती है | बल पौरुष बढाने हेतु गर्म दूध में हल्दी डाल कर इसे शौख से पीया जाता है तभी तो इसे गोल्डन मिल्क भी कहते हैं |
यह खून की अशुद्धि दूर करती है इसमें उपस्थित कर्क्युमीन नामक तत्व कैंसर विरोधी होता है | त्वचा पर पित्त के कारण चकते खुजली आदि होने पर हल्दी से निर्मित हरिद्राखांड आयुर्वेदिक औषधि लाभदायक है | आंवले के साथ हल्दी का प्रयोग प्रमेह के रोगियों के लिए लाभदायक होता है |
सरसों
सरसों उष्ण और तीक्ष्ण गुण का होता है | सफेद सरसों को श्रेष्ठ माना जाता है | पीले और काले रंग कि सरसों बहुतायत मिलती है | सरसों वात, कफ का शमन करता है लेकिन पित्त को बढाता है | सरसों के पत्ते की सब्जी से शरीर में दोष बढ़ते हैं | सरसों के तेल रसोई में उपयुक्त होते हैं| सरसों का तेल भी उष्ण होता है अत: ठण्डी जगहों पर रसोई घरों में इसका उपयोग बहुतायत होता है | मसूड़ों से पुय निकल कर दुर्गन्ध उत्पन होने पर सरसों के तेल में सेंधा नमक डाल कर कुल्ला करने से लाभ मिलता है | जाड़े की दिनों में धुप में बैठकर सरसों तेल का मालिश करने से शरीर बलिष्ट व वात रोगोंस से मुक्त होता है |
सोंठ
त्रिकटु में प्रयुक्त होने वाला घटकों में से एक सोंठ भी है | सूखे हुए अदरख को सोंठ कहते हैं यह एक विशिष्ट प्रकार से सुखाकर निर्मित होता है | यह सोंठ तीखी होती है और गले में फसे हुए कफ को बाहर निकलने में मदद करती है | खांसी पर गुणकारी औषधि होने से सोंठ का उपयोग अनेक घरों में किया जाता है | यह भूख को बढ़ाती है | शरीर में उष्णता उत्पन्न करने का कार्य करती है | यह पाचन सुधारती है | पाचन क्रिया बिगड़ने से शरीर में अपचित घटकों के कारण उत्पन्न जोड़ों में दर्द, सुजन आदि लक्षण होने पर सोंठ का उपयोग प्रभावकारी होता है | सोंठ का चूर्ण हल्दी और गुण से मिलाकर कफ युक्त खांसी में खाने से आराम मिलता है | जिन लोगों को दूध पीने से पेट फूलता हो कफ बनता हो वैसे लोगों के लिए एक कप गरम दूध में थोड़ी सी सोंठ डाल कर लेने से दूध पचने में मदद करती है |
साभार : डॉ० वशिष्ठ तिवारी (आयुर्वेद रत्न), प्रयाग रजि० न०-83443
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