योग के मुख्यत: दो पहलू हैं एक शारीरिक योग दूसरा अध्यात्मिक/दार्शनिक/भावनात्मक | शरीर की स्वच्छता से लेकर समाधि की सिद्धि तक की योग की यात्रा बहुत ही सरल, सहज, वैज्ञानिक, प्रमाणिक, व्यवहारिक व सार्वभौमिक है | यूं तो पूरा जीवन ही योग है, क्योंकि जीवन में तीन ही मूल तत्व है – विचार, भावनाएं एवं क्रियाएं (Thoughts, Immotions & Actions) | इसे हीं ज्ञान योग, भक्ति योग एवं कर्म योग की संज्ञा भारतीय मनीषियों ने वेदों, उपनिषदों एवं भागवत गीता में दी है | योग करने से व्यक्ति के जीवन में जो मूलभूत परिवर्तन या रूपांतरण घटित होता है वो
पूर्ण क्रियाशील व विवेकशील साधना व साधन से संपन्न प्रसन्न पावन तरंगित मन वाला है | योग करने वाला व्यक्ति साधन हीन, दु:खी, दरिद्र नहीं होता वह भूख और कुपोषण का शिकार नहीं होता अपितु समष्टि की भूख व कुपोषण का समाधान करने वाला होता है |
योगी सात्विक, अहिंसक समृद्धि से युक्त होता है अर्थात राजसिक, तामसिक और हिंसक समृद्धि में उसका विश्वास नहीं होता | मनुष्य व मनुष्येत्तर जीवों और प्रकृति के साथ वह अज्ञान, अन्याय व अविवेक पूर्ण आचरण नहीं करता | योगी अपने शरीर, इंद्रियां मन व आत्मा के अपने अस्तित्व के विभिन्न घटकों के प्रति पूर्ण जागरूक होता है | वह रोग, तनाव, अशांति और अविवेकपूर्ण इक्षाओं से मुक्त होकर अकाम, निष्काम, आत्म काम होकर दिव्यजीवन जीता है | योग करने वाले व्यक्ति का जीवन पूर्ण संतुलित, संयमित और मर्यादित होता है |
योग करने वाला व्यक्ति योग की महिमा व भोग के क्षणिक सुख आकर्षण को ठीक-ठीक यथार्थ रूप में अनुभव करता है और अपना अभ्युदय और नि:श्रेयस सिद्ध करता हुआ समष्टि के प्रति अपने कर्तव्य को कृतज्ञता पूर्वक निभाता है | व्यक्ति और समष्टि में संतुलन बनाए रखता है |
योग करने वाला आध्यात्मिक व्यक्ति अपने ही एकत्व का दर्शन पूरे ब्रह्मांड में करता है | वह वसुदेव कुटुंबकम, विश्व बंधुत्व, एकतत्व एवं सृष्टि के सह अस्तित्व के सिद्धांत के प्रति पूर्ण निष्ठा रखता हुआ सबके सुख, सब की समृद्धि एवं सब के सम्मान व स्वाभिमान की रक्षा हेतु प्रयत्न करता है | अन्याय पूर्ण युद्ध व हिंसा से वह सर्वथा दूर रहता है |
योग करने वाला व्यक्ति सृष्टि के आदिकाल से लेकर आज तक जितनी भी विभिन्न संस्कृतियां, सभ्यताएं, परंपराएं, मत, पंथ, संप्रदाय व मजहब है उन सब का सम्मान करता है | सब में एक ही आत्मा और परमात्मा का दर्शन करता है | योगी सृष्टि के शाश्वत सत्यों, नित नियमों या Universal Law सृष्टि के सनातन धर्म को अनुभव करता एवं कराता है | तथा उसके अनुरूप जीता है | मजहब के नाम पर खून-खराबा के बारे में यह सोच भी नहीं सकता |
योग करने वाला व्यक्ति सत्ता, संपत्ति, सम्मान, वैश्विक सुख़ और संबंधों के संदर्भ में अविवेकपूर्ण, आचरण नहीं करता है | योग के मार्ग पर चलकर ही व्यक्ति परिवार, समाज, राष्ट्र और विश्व, सुख-समृद्धि, संबंध, सुरक्षा व शांति पूर्वक जीवन जी सकता है | 177 देशों के अनुमोदन के साथ जब पूरा विश्व 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाता है तो योग के प्रति एक सहज आकर्षण व योग के बारे में अधिकाधिक जानने की स्वभाविक उत्सुकता भी सब में बढ़ती है।
साभार : डॉ० वशिष्ठ तिवारी (आयुर्वेद रत्न) प्रयाग
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