कैकई से सुमन्त्र का तीखा संवाद…
बात उस समय की है जब सुमंत्र जी को राम वन गमन ज्ञात हुआ वह मूर्छित हो गए तदंतर होश आने पर सारथी सुमंत्र सहसा उठ खड़े हुए | उनके मन में बड़ा ही संताप हुआ जो अमंगल कारी था | वह क्रोध के मारे कांपने लगे, उनके शरीर और मुख से पहले की स्वभाविक कांति बदल गई |
वे क्रोध से आंखें लाल करके दोनों हाथों से सिर पीटने लगे और बारंबार लंबी सांस खींच-खींच कर हाथ से हाथ मल कर दांत कट-कटा कर राजा दशरथ के मन की वास्तविक अवस्था देखते हुए अपने वचन रूपी तीखे बाणों से कैकई के हृदय को कम्पित सा करने लगे |
अपने अशुभ और अनुपम वचन रुपी बज्र से कैकई के सारे मर्मस्थानों को विदीर्ण से करते हुए सुमंत ने उससे इस प्रकार कहना प्रारंभ किया-देवी…! जब तुमने संपूर्ण चराचर जगत के स्वामी स्वयं अपने पति महाराज दशरथ का ही त्याग कर दिया तब इस जगत में कोई ऐसा कुकर्म नहीं जिसे तुम ना कर सको | मैं तो समझता हूं कि तुम तो पति की हत्या करने वाली हो हीं अंततः कुल कितनी भी हो |
ओह..! जो देवराज इंद्र के समान अजय पर्वत के समान अकंपनीय और महासागर के समान क्षोभरहित हैं उन महाराज को भी तुम अपने कुकृत्य से संतप्त कर रही हो | राजा दशरथ तुम्हारे वरदाता पालक से पहले तुम्हारे पति हैं, तुम्हें इसका अपमान नहीं करना चाहिए | नारियों के लिए करोड़ों पुत्रों से भी अधिक पति की चिंता होनी चाहिए |
इस कुल में राजा का परलोक वास कर जाने पर उनके पुत्रों की अवस्था का विचार करके जो जेष्ठ पुत्र होते हैं वहीं राज्य पाते हैं | इक्ष्वाकु वंश के स्वामी महाराज दशरथ के जीते जी ही तुम राजकुल के इस परंपरागत आचार को मिटा देना चाहती हो | तुम्हारे पुत्र भरत राजा हो जाए और इस पृथ्वी का शासन करें किंतु हम लोग तो वहीं चले जाएंगे जहां श्रीराम जाएंगे |
तुम्हारे राज्य में कोई भी ब्राह्मण निवास नहीं करेगा | यदि तुम मर्यादा हीन काम करोगी तो हम लोग निश्चय ही उसी मार्ग पर चले जाएंगे जिसका श्रीराम ने सेवन किया है | संपूर्ण बंधु-बांधव और सदाचारी ब्राह्मण तुम्हारा त्याग कर देंगे |
हे देवी…! फिर इस राज्य को पाकर तुम्हें क्या आनंद मिलेगा तुम ऐसा मर्यादा हीन कर्म क्यों करना चाहती हो ? मुझे तो देखकर आश्चर्य हो रहा है कि तुम्हारे इतने बड़े अत्याचार करने पर भी पृथ्वी फट क्यों नहीं जाती अथवा बड़े-बड़े महर्षियों के धिक्कार पूर्ण शाप जो देखने में भयंकर और जलाकर भस्म कर देने वाले होते हैं, श्री राम को घर से निकालने के लिए तैयार खड़ी हुई तुम जैसी पाषाण हृदय का सर्वनाश क्यों नहीं कर डालते हैं |
भला आम को कुल्हाड़ी से काटकर उसकी जगह नीम का सेवन करेगा..! जो आम की जगह नीम को ही दूध से सींचता है उसके लिए भी यह नीम मीठा फल देने वाला नहीं हो सकता | (अतः वरदान के बहाने श्री राम को वनवास देकर कैकई के चित्त को संतुष्ट करना राजा के लिए कभी सुखद परिणाम नहीं देता)
कैकई मैं समझता हूं कि तुम्हारी माता का अपने खून के अनुरूप जैसा स्वभाव था, वैसा ही तुम्हारा भी है | इस लोक में कही जाने वाली यह कहावत सत्य ही है कि “कहीं नीम से मधु नहीं टपकता” | तुम्हारी माता के दुराग्रह की बात भी हम जानते हैं |
इस विषय में जैसा कि सुना गया है कि एक समय किसी वर देने वाले साधु ने तुम्हारे पिता को अत्यंत उत्तम वर दिया था | उस वर के प्रभाव से केकेय नरेश समस्त प्राणियों की बोली समझने लगे | उस वर के प्रभाव से त्रियक योनि में पड़े हुए प्राणियों की बातें भी उनकी समझ में आ जाती थी |
एक दिन तुम्हारे महा तेजस्वी पिता जी शैय्या पर लेटे हुए थे | उसी समय जम्भ नामक पक्षी की आवाज उनके कानों में पड़ी | उसकी बोली का अभिप्राय उनकी समझ में आ गया और वे उस पर कई बार हंस दिए |
उसी सैय्या पर तुम्हारी मां भी सोई थी | वह यह समझ कर के राजा मेरी हंसी उड़ा रहे हैं , कुपित हो उठीं और मौत की इच्छा रखते हुए बोली- शौम्य नरेश्वर..! तुम्हारे हंसने का क्या कारण है ? मैं जानना चाहती हूं |
तब राजा ने कहा कि यदि मैं अपने हंसने का कारण बता दूं तो उसी क्षण मेरी मृत्यु हो जाएगी, इसमें संशय नहीं है | देवी यह सुनकर तुम्हारी रानी माता ने तुम्हारी पिता कैकेय राज से फिर कहा- तुम जियो या मरो मुझे कारण बता दो | भविष्य में, तुम मेरी हंसी नहीं उड़ा सकोगे |
अपनी प्यारी रानी के ऐसा कहने पर कैकेय राज ने उस वर देने वाले साधु के पास जाकर सारा समाचार ठीक-ठीक कह सुनाया | तब उस वर देने वाले साधु ने राजा को उत्तर दिया- महाराज..! रानी मरे या घर से निकल जाए तुम कदापि यह बात उसे मत बताना |
प्रसन्नचित्त वाले उस साधु का वचन सुनकर कैकेय राजा ने तुम्हारी माता को तुरंत घर से निकाल दिया | तुम भी इसी प्रकार दुर्जनों के मार्ग पर स्थित हो पाप पर ही दृष्टि रखकर मोह वश राजा से यह अनुचित आग्रह कर रही हो |
आज यह लोकोक्ति सोलह आने सच मालूम होती है कि पुत्र पिता के समान और पुत्रियाँ माता के समान होती हैं | इस लोकोक्ति को तुम चरितार्थ ना करो तुम ऐसा ना बनो | राम का राज्याभिषेक होने दो |
अपने पति की इच्छा का अनुसरण करके इस जन समुदाय को यहां शरण देने वाली बनो | पापपूर्ण विचार रखने वाले लोगों के बहकावे में आकर तुम देवराज इंद्र के तुल्य तेजस्वी अपने स्वामी को अनुचित कर्म में न लगाओ |
हे देवी..! कमलनयन श्रीमान राजा दशरथ पाप से दूर रहते हैं वह अपनी प्रतिज्ञा झूठी नहीं कर सकते | श्री रामचंद्र जी अपने भाइयों में श्रेष्ठ, उदार, कर्मठ, स्वधर्म पालक, बलवान व जगत के रक्षक हैं | इनका इस राज्य पर अभिषेक होने दें |
हे देवी..! अगर श्री राम अपने पिता राजा दशरथ को छोड़कर वन चले गए तो संसार में तुम्हारी बड़ी ही निंदा होगी |
इस प्रकार सुमंत्र ने हाथ जोड़कर कैकई को राजभवन में सांत्वनापूर्ण तथा तीखे वचनों से भी बार-बार विचलित करने की चेष्टा कीं, किन्तु वह रानी कैकयी अपने बात से टस से मस नहीं हुई |
देवी कैकई के मन में ना तो क्षोभ हुआ और न दु:ख हीं | उस समय उसके चेहरे के रंग में भी कोई फर्क पड़ता दिखाई नहीं दिया, और यह चरितार्थ हुआ कि “नीम से कभी मधु नहीं टपकता” |
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साभार : डॉ० वशिष्ठ तिवारी (आयुर्वेद रत्न), प्रयाग
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