कार्तिकेय माँ पार्वती पुत्र कैसे..? (गंगा के पुत्र कार्तिकेय)
एक बार की बात है कि जब शंकर जी तपस्या कर रहे थे उस समय इंद्र, अग्नि देव आदि संपूर्ण देवता अपने लिए सेनापति की इच्छा लेकर ब्रह्मा जी के पास गए और उन्हें प्रणाम कर बोले प्रभु पूर्वकाल में जिन भगवान महेश्वर ने हमें बीज रूप से सेनापति प्रदान किया था वे उमा देवी के साथ उत्तम तप का आश्रय लेकर तपस्या करते हैं | विधि-विधान के ज्ञाता पितामह अब लोकहित के लिए जो कर्तव्य प्राप्त हो, उसे पूरा करें क्योंकि आप ही हमारे आश्रय हैं |
देवताओं की आवाज सुनकर पितामह ब्रह्माजी ने उन्हें सांत्वना देते हुए मधुर वचनों से कहा- देवताओं ? शैल कुमारी पार्वती ने जो श्राप दिया है उसके अनुसार तुम्हें अपनी पत्नियों के गर्भ से अब कोई संतान उत्पन्न नहीं होगी | उमा देवी की वाणी अबध्य है | अत: वह सत्य होकर ही रहेगी इसमें कोई संशय नहीं है | ये हैं आकाश गंगा जो की उमा की बड़ी बहन है जिनके गर्भ में शंकर जी के उस तेज को स्थापित करके अग्नि देव एक ऐसे पुत्र को जन्म देंगे जो देवताओं के शत्रुओं का दमन करने में हर प्रकार से समर्थ सेनापति होगा |
ये गंगा गिरिराज की ज्येष्ठ पुत्री है अतः अपनी छोटी बहन के उस पुत्र को अपने ही पुत्र के समान मानेगी | उमा को भी यह बहुत ही प्रिय लगेगा इसमें कोई संशय नहीं है | ब्रह्मा जी का यह वचन सुन सभी देवता कृतकृत्य हुए और ब्रह्मा जी को प्रणाम करके पूजन किया और कैलाश पर्वत पर जाकर संपूर्ण देवताओं ने अग्नि देव को पुत्र उत्पन्न करने के कार्य में नियुक्त किया | वे बोले हे देव- यह देवताओं का कार्य है इसे सिद्ध करें | भगवान रुद्र के उस तेज को अब आप गंगा जी में स्थापित कीजिए | तब देवताओं से बहुत अच्छा, बहुत अच्छा कह कर अग्निदेव गंगा जी के निकट आए और बोले- हे देवी आप इस गर्भ को धारण करें यह देवताओं का प्रिय है | अग्निदेव के इस बात से गंगा देवी ने दिव्य रूप किया | गंगा देवी की यह रूप-वैभव-महिमा देखकर अग्नि देव ने उस रूद्र तेज को उनके (गंगा देवी) सब ओर बिखेर दिया |
अग्निदेव ने जब गंगा देवी को सब ओर से उस रुद्र तेज द्वारा अभिषिक्त कर दिया तब गंगा जी के सारे स्रोत उससे परिपूर्ण हो गए | तब गंगा देवी ने सब देवताओं के प्रतिनिधि अग्निदेव से कहा कि- हे देव आपके द्वारा स्थापित किए हुए इस बढ़े हुए तेज को धारण करने में मैं असमर्थ हूं | उसकी आँच से मैं जल रही हूं और मेरी चेतना व्यथीत हो रही है |
तब संपूर्ण देवताओं के हविष्य का भोग लगाने वाले अग्निदेव ने गंगा देवी से कहा- हे देवी हिमालय पर्वत के पार्श्व भाग में इस गर्भ को स्थापित कर दीजिए | यह सुन गंगा देवी ने उस अत्यंत प्रकाशमान गर्भ को अपने स्रोतों से निकालकर यथोचित स्थान में रख दिया | गंगा के गर्भ से जो तेज निकला वह तपाए हुए जाम्बुनद सुवर्ण के समान कांतिमान दिखाई देने लगा | पृथ्वी पर जहां वह तेजस्वी गर्भ स्थापित हुआ था वहां की भूमि और प्रत्येक वस्तु स्वर्णमयी हो गई | उसके आसपास का स्थान अनुपम प्रभा से प्रकाशित होने वाला रजत हो गया | उस तेज की तीक्ष्णता से ही दूरवर्ती भूभाग की वस्तुएं तांबे और लोहे के रूप में परिणत हो गई | उस तेजस्वी गर्भ का जो मल था वही वहाँ शीशा और रांगा हुआ | इस प्रकार पृथ्वी पर पढडकर वह तेज नाना प्रकार के धातुओं के रूप में वृद्धि को प्राप्त हुआ |
पृथ्वी पर उस गर्भ के रखे जाते हीं उसके तेज से व्याप्त होकर सारा बन व पर्वत स्वर्णमय हो गया और जगमगाने लगा | उस गर्भ के संपर्क से वहां का त्रिण, वृक्ष, लता आदि यह सब कुछ सोने का हो गया | उसके बाद इंद्र और मरुद गणों सहित संपूर्ण देवताओं ने वहां उत्पन्न हुए कुमार को दूध पिलाने हेतु छहों कृतिकाओं को नियुक्त किया | तब उन कृतिकाओं ने “यह हम सबका पुत्र हो” ऐसी उत्तम शर्त रख कर और इस बात का निश्चय कर, निश्चित विश्वास लेकर उस नवजात शिशु को अपना दूध प्रदान किया |
उस समय सब देवता बोले कि यह बालक कार्तिकेय कहलायेगा और तुम लोगों का त्रिभुवन विख्यात पुत्र होगा- इसमें संशय नहीं है |
देवताओं का यह अनुकूल वचन सुनकर शिव और पार्वती से स्कन्दित (स्खलित) तथा गंगा द्वारा गर्भ स्राव होने पर प्रकट हुए अग्नि समान उत्तम प्रभा से प्रकाशित होने वाले उस बालक को उन कृतिकाओं ने नहलाया | अग्नि तुल्य तेजस्वी महाबाहु कार्तिकेय गर्भ श्राव काल में स्कंदित हुए थे, इसलिए देवताओं ने इन्हें स्कन्द कह कर पुकारा उन कृतिकाओं के स्तनों में परम उत्तम दूध प्रकट हुआ | उस समय स्कन्द ने अपने छ: मुख प्रकट किए और उन छहों से एक साथ दुग्धपान किया | एक ही दिन दुग्धपान करके उस सुकुमार शरीर वाले शक्तिशाली कुमार ने अपने पराक्रम से दैत्यों की सारी सेनाओं पर विजय प्राप्त किया | तत्पश्चात अग्नि देव आदि सभी देवों ने मिलकर उन महा तेजस्वी स्कन्द को देवसेना पद पर अभिषेक किया | इस प्रकार बालक कार्तिकेय देवताओं के सेनापति हुए |
साभार : डॉ० वशिष्ठ तिवारी (आयुर्वेद रत्न) प्रयाग
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Bahut hi achhi Jankari.
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