जीवित प्राणी की चेतना जब से जागृत हुई तब से लेकर काल के गाल में समाने वक्त तक एक ही इच्छा होती है कि हम कुछ समय स्वस्थ्य जीवित रहें | इसी इच्छा की पूर्ति का एक स्रोत है आयुर्वेद | आयु का वेद जो दीर्घायु के रहस्यों को खोले, बतावे – तो आइए हम सभी दो मिनट इस विषय पर सोचें कि आयुर्वेद क्या है ? किस विधि से हम अधिक दिनों तक स्वस्थ जीवित रह सकते हैं |

वैसे तो हमारे यहाँ कई चिकित्सा पद्धतियां हैं उनमें मुख्य हैं- आयुर्वेद, एलोपैथ, होम्योपैथ, नेचुरोपैथ, यूनानी इत्यादि-इत्यादि | यहां हम बात करते हैं आयुर्वेद पद्धति की | आयुर्वेद की श्रृष्टि  वेदों के सदृश्य ही अनादि है जिस प्रकार शिशु के जन्म से पूर्व स्तन्य की उत्पत्ति होती है उसी प्रकार प्रजापति ब्रह्मा ने विश्व रचना में प्राणियों की उत्पत्ति के पूर्व हीं आयुर्वेद की रचना की संसार के प्रचलित चिकित्सा प्रणालियों में सबसे पुरातन है-आयुर्वेद चिकित्सा प्रणाली |

संसार की सभी चिकित्सा प्रणाली का उद्गम आयुर्वेद ही माना जाता है | जिसकी उत्पत्ति का कोई निश्चित समय ज्ञात नहीं हो सका है त्रिदोष सिद्धांत पर आधारित आयुर्वेद एक संपूर्ण चिकित्सा की पद्धति है | शरीर, रोग, औषधि, चिकित्सा, दीर्घ आयु इत्यादि विषयों का कई विशाल भंडार है इसके पास |

धरती के सुदूर इलाकों में फैली हजारों-हजार पीढ़ियों ने बार-बार के व्यवहार द्वारा जो अनुभव अपने पास संजों रखा था उसे आज से हजारों वर्ष पहले भारत के मनीषियों ने लिपिबद्ध किया और नाम दिया- आयुर्वेद | नेपाल, श्रीलंका, वर्मा, मलेशिया, इंडोनेशिया आदि देशों में यह काफी प्रचलित है | अमेरिका और यूरोप के देशों में भी आधुनिक आयुर्वेदिक औषधियों का निर्यात किया जा रहा है |

आयुर्वेद का विश्वास है कि दीर्घायु के लिए निम्न बातों पर ध्यान आवश्यक है :-

1. प्रातः काल नींद से जगना | खूब सबेरे (ब्रह्म मुहूर्त) में तडके जगने से स्वास्थ्य और आयु की वृद्धि होती है ।

2.  जल- सुबह जगने पर कम-से-कम एक ग्लास स्वच्छ ठंडा जल अवश्य पीना चाहिए | दिन में कई बार जल पीना हितकर है | अधिक जल पीने से पेशाब द्वारा मल
निष्कासन क्रिया में सहायता पहुंचती है |

3.  शौंच – रोज दो बार शौच जाना चाहिए सुबह और संध्या | शौच में अधिक जोड़ नहीं लगाना चाहिए |

4  व्यायाम- व्यायाम मांसपेशियों को दृढ़ और मजबूत करता है | तथा मन में स्फूर्ति लाता है | शरीर को थका देने वाला व्यायाम नुकसानदेह है |

5  स्नान- स्नान से स्फूर्ति, प्रसन्नता और पाचन क्रिया में सुधार आती है | स्नान रोज सुबह ठंडे जल से करना चाहिए | गर्मी के दिनों में संध्या समय भी स्नान करना
हितकर होता है |

6  पूजन- स्नान के बाद अपनी-अपनी आस्था के अनुसार पूजन आवश्यक है पूजन और ध्यान से मन में शांति और आत्मबल में वृद्धि होती है |

7  भोजन- भोजन जीवन का आधार है और रोगों का कारण भी | समय पर शांत चित्त होकर हाथ पैर मुंह धोकर साफ-सुथरे रहने वाले स्वस्थ व्यक्ति का बनाया भोजन
करना चाहिए | भोजन खूब चबा-चबाकर धीरे-धीरे करना चाहिए

8  व्यस्तता- काम में लगे रहने से अपने ऊपर जिम्मेदारी समझने से शरीर में चुस्ती बनी रहती है |

9  विश्राम- उत्तम स्वास्थ्य के लिए परिश्रम जितना आवश्यक है उतना ही आवश्यक है विश्राम भी | प्रत्येक 4 घंटे पर आधे घंटे का विश्राम भी अनिवार्य है |

10. नींद- प्रति दिन रात में कम-से-कम 6-8 घण्टे की गहरी नींद आवश्यक है | रात्रि के 9-10 बजे तक साफ सुथरे बिछावन पर अवश्य सो जाएँ और सूर्योदय से डेढ़ घण्टे
पहले बिछावन अवश्य त्याग दें अर्थात जग जाएँ |

11. ब्रम्हचर्य – आहार याने भोजन नींद और ब्रह्मचर्य ये स्वास्थ्य रूपी भवन के तीन मजबूत स्तंभ हैं | वीर्य की रक्षा ही ब्रह्मचर्य है |

12 औषधि प्रयोग – ऐसे तो उपर्युक्त आहार-विहार करने वाले प्राणी को किसी भी औषधि की विशेष आवश्यकता नहीं होती और वे अपनी लंबी आयु प्राप्त कर सकते हैं
फिर भी आयुर्वेद में दीर्घायु प्राप्ति के लिए रसायन (शरीर में नयापन या पुनः दीर्घ यौवन प्रदान करने वाली औषधि) और मल (पैखाना) निष्कासन क्रिया में सहायता
पहुंचाने वाली औषधियों के प्रयोग का विधान है | उन औषधियों का यथा समय सेवन कर दीर्घ आयु- शतक आयु प्राप्त किया जा सकता है ।
||——————-जय आयुर्वेद—————-||

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साभार : डॉ० वशिष्ठ तिवारी (आयुर्वेद रत्न) प्रयाग
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